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की बणेगा दुनिया दा सच्चे पातशाह वाहेगुरू जाने

बुरी सोच कोई घोल कर नहीं पिलाता सोच समझ कर लेने चाहिए जीवन के फैसले
रक्त बन रहा पानी, माँ कर रही बच्चों का कत्ल
सात जन्मों के बंधन पर भारी पड़ रहा एक -दो पल का प्यार
पुत्र-पिता का रिश्तों में भी आने लगी बड़ी दरार
सास के साथ झगड़े के बाद माँ की तरफ से 6 वर्षीय बच्चे का कत्ल, प्रेमी के साथ मिलते को बच्चो ने देखा, बच्चे को मां ने किया कत्ल, प्रेमी के साथ मिल कर किया पति का कत्ल, दो बच्चों की माँ प्रेमी के साथ फऱार आदि जैसी खबरें जब सुनने या पढऩे को मिलती हैं तो मन को बहुत दुख लगता है। इसके साथ-साथ यह बात अपने आप ही मुंह में से गुरदास मान साहिब की तरफ से गाए गीत की लाइनें जुबान पर आ जाती हैं कि की बनेगा दुनिया का सच्चे
पातशाह वाहेगुरू जाने। हालात इतने खऱाब हो रहे हैं कि कई बार व्यक्ति सोच में पड़ जाता है कि किस पर यकीन किया जाये, किस पर भरोसा किया जाये। जिस पर विश्वास किया जा रहा है, वह उस विश्वास को कायम रखेगा या भरोसा तोड़ देगा। इतने हालात एक ही दम खऱाब हो नहीं हो गए हां इतना जरूर है तेज़ी के साथ हालात खऱाब ज़रूर हुए हैं। इन हालातों के पीछे क्या कारण रहे हैं, आओ उनके बारे में सोच विचार करते हैं शायद उन कारणों का पता लगा कर उनमें सुधार किया जा सके।
संयुक्त परिवार की रीत का एकदम कम होना सब से बड़ा कारण 
जैसे हालात आज पैदा हुए उसके पीछे सब से बड़ा और अहम कारण देखने या समझने को मिल रहा है, वह है संयुक्त परिवार की रीत जो कि पिछले समय के एक दम कम हो गई है, इतना ज़रूर है कि ख़त्म नहीं हुई परन्तु जहाँ इस रीत के टूटने की शुरुआत होती है। वहां इस रीत को अपनाने में बहुत लोग देखों देखी परिवारों से अलग रहने लग पड़े हैं। बिना कोई सोच विचार किए कि इसके क्या नुक्सान हैं या क्या लाभ हैं। संयुक्त परिवारों में रहने का सब से बड़ा फ़ायदा यह होता है कि बैठने, उठने, रहने, सहने और समाज के किस तरह के साथ विचरन करना है, इसके बारे में जाँच आती है, अच्छी शिक्षा मिलती है परंतु यह काम संयुक्त परिवारों से टूटने वाले नहीं करते सकते क्योंकि सारा खर्चा एक के सिर पर आ जाता है, परिवार में रहने वाली महिला को सारा घर का काम आप ही करना पड़ता है । संयुक्त परिवार में  रहते हुए एक फ़ायदा तो यह होता है कि शर्म, हिया और अन्य सामाजिक अच्छाईयां जीवन में घर कर जाती हैं।
सोशल मीडिया का जी भर कर हो रहा दुरप्रयोग
आज कम्प्यूटर का युग चल रहा है। इन चीजों का निर्माण मनुष्य की सहायता और भलाई के लिए किया गया था। सोशल मीडिया का प्रयोग जहाँ एक दूसरे के साथ मेल मिलाप को बढाती है, वहां दूसरा पक्ष देखा जाये तो इसका दुरुपयोग भी शरारती लोगों जी भर कर किया है। सोशल मीडिया और मशीनरी ने कभी मना नहीं करना होता है कि यह न कर या यह कर। वह मशीनरी है, उसको जिस तरफ़ भेज दिया जाये, उस तरफ़ को वह मशीनरी चल पड़ती है। सोशल मीडिया के कई कहानियाँ, किस्से, गीत, गज़लें आतीं ही रहती हैं, जिस के समाज का हर रंग पेश किया जाता है। जब कोई किसी की कहानी दिखाई जाती है तो उसके में कई दिलकश अंदाज़ पेश किये जाते हैं परंतु अंत में इसका क्या नुक्सान होता है, यह भी बताया जाता है परंतु इसके दिलकश अंदाज़ को अपनाने की तरफ तो कदम बढ़ा लिए जाते हैं। जहाँ बुराई होती है, उसका हशर भी बुरा ही होता है। उसके में सोशल मीडिया का जहां दोष कम होता है, उसका दुरुपयोग करने वाला ज़्यादा दोषी होता है।
हथियारों को शान, लड़कियाँ को पटाख़ा बताने वाले गायक और गीतों के लेखक भी जिम्मेवार
समय समय के हिसाब के साथ हर किरदार की महत्ता समाज में बदलती रहती है और समाज को निखारने और संवारने में दो किरदार जो अहम रोल अदा करते हैं, एक है लेखक और दूसरे गायक। जिन्होंने जो सुनाना होता है या दिखाना होता है, उसे अपना आइडल मन कर अपने जीवन में उन चीजें को अपनाना होता है। थोड़े समय  में आई गायकी और लेखन में आई गिरावट ने नौजवान पीढ़ी को एक ओर दिशा दे दी है, जिसके चलते दशा क्या हो रही है, वह हम देख ही रहे हैं। हथियार रखने को अपनी शान समझना और लड़कियाँ जिन का आदर सम्मान हमारे गुरुओं पीरों ने अपने वचनों में दिया उसको पटाख़ा बताने के साथ साथ उसके किरदार को भी एक अलग ही रंग रूप दिया जा रहा है, यदि बच्चे संयुक्त परिवारों में रहे तो वहां तो बड़े बजुर्ग बच्चों को समझा देते हैं परन्तु अलग अलग रहने के कारण मां पिता के पास समय कम होने के कारण वह जो दिखाया जाता उसको ही अच्छा समझ कर उस तरफ़ को चल पड़ते हैं जिसका नुक्सान उनको भुगतान पड़ता है। जब तक कुछ समझ में आता है समय गुजऱ चुका होता है, यदि हालातों को फिर से अच्छे बनाना है, समाज को अच्छा बनाना है तो मैं गायकों और लेखकों को यह विनती करता हूं कि अच्छा लिखो, अच्छा गायो जिससे नौजवान पीढ़ी अच्छे तरफ़ की ओर चल सके।
पैसा और दिखावे की जि़ंदगी के सपनों ने भी किया बेड़ा गर्क 
पैसे की दौड़ और दिखावे की जि़ंदगी के सपनों ने भी मानवता का बेड़ गर्क करके रख दिया है। आज समाज में रोटी, कपड़ा और मकान तक ही सोच सीमित नहीं रह गई, दूसरों के सामने अपना नाक ऊँचा रखते रखते अपनी इज्जत को भी दांव पर लगा दिया जाता है, जिसका नुक्सान नहीं बल्कि हरजाना मनुष्य को भुगतना पड़ रहा है। क्षमा करना बात कहते हुए शर्म भी आती है परन्तु सच्चाई है कि अपने आप को आगे बढ़ाने और रुतबे को दूसरों से आगे करने के लिए यदि कोई गलत रास्ता भी अपनाना पड़े तो लोग पीछे नहीं हटते, जिस के साथ एक गलत रीत समाज में चल पड़ती है, जिस को रोकना कई बार बहुत ही मुश्किल हो जाता है।
फ़सल और नस्ल को समय सिर संभाला जाये तो ही बचेगी
बुर्जुगों की कही गई बातें जीवन को हमेशा ही संवारने का काम करती हैं, कईयों को समय सिर पता लगता है और कई बार समय बीत जाने के बाद समझ लगती हैं। बुर्जुग अक्सर ही यह बात कहते हैं कि फ़सल व नस्ल को समय सिर संभाल लेना चाहिए, नहीं तो उसके बुरे नतीजे आने वाली पीढिय़ों को भुगतने पड़ते हैं। जिस तरह किसान की तरफ से बीजी गई फ़सल को यदि समय सिर, खाद, स्प्रे आदि न किया जाये तो फ़सल बर्वाद हो जाती है। इसी तरह ही परिवार में कोई लड़का या लड़की कोई एक कदम गलत उठा ले तो उनके किए का फल आने वाली पीढिय़ां काफ़ी समय तक भुगततीं रहती हैं। समय रहते ही आज समाज को बचाने के लिए सोच विचार करने की ज़रूरत है जिससे हमारे समाज को अच्छी दिशा प्रदान हो सके। जब दिशा सही होती है तो दशा अपने आप ही सही हो जाती है।
लेखक
मनप्रीत सिंह मन्ना
चिपडा
मोबा.09417717095,

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