केंद्रीय कर्ज से और बढ़ेगा पंजाब के मौजूदा कर्ज का बोझ : महिला किसान यूनियन
कहा कि मुख्यमंत्री ने मोदी के समक्ष किसानों की मांगों को न उठाकर अन्नदाता को निराश किया
चंडीगढ़– महिला किसान यूनियन ने कहा कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने दिल्ली दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष पंजाब की मांगों को उठाने और केंद्रीय योजनाओं के जरिए राज्य में पैसा लाने में पूरी तरह विफल रहे क्योंकि उन्होंने केंद्र से ऋण लेने के अलावा और कोई मांग ही नहीं उठाई।
यहां जारी एक बयान में महिला किसान यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष बीबी राजविंदर कौर राजू ने कहा कि मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार द्वारा किसानों के आंदोलन को खत्म करने के लिए किए गए सभी लिखित वादों को पूरा करने के लिए मोदी से बात ही नहीं की और न ही राज्य के विभिन्न विभागों के लिए केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत अतिरिक्त वित्तीय सहायता, अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए सीमा खोलने, अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की शुरूआत, संघीय ढांचे की सुरक्षा और लोक कल्याण योजनाओं के लिए ठोस मांग रखी है।
महिला किसान नेता ने कहा कि भगवंत मान ने बिना किसी प्रशासनिक तैयारी के प्रधानमंत्री के साथ आधिकारिक बैठक की जिसका कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला क्योंकि कर्ज मांगने के अलावा कोई और मुद्दा ही नहीं था। बीबी राजू ने कहा कि पंजाब पहले से ही अरबों रुपये का कर्जदार है और अब एक लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त कर्ज से पहले से कर्ज में डूबे राज्य पर ऋण का बोझ और ज्यादा बढ़ जाएगा।
बीबी राजू ने कहा कि विधानसभा चुनाव के दौरान आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने पंजाबियों से वादा किया था कि वह राज्य से भ्रष्टाचार मिटाकर 30,000 करोड़ रुपये और रेत माफिया को खत्म कर 20,000 करोड़ रुपये जुटाएंगे। अगर आप सरकार इस फॉर्मूले के जरिए 50,000 करोड़ रुपये जुटा सकती है तो अब केंद्र से कर्ज लेने की क्या जरूरत है ?
महिला किसान नेता ने कहा कि केंद्र सरकार के वादे से मुकरने के कारण किसान आंदोलन का दूसरा चरण शुरू होने से पहले ही मुख्यमंत्री को किसानों की सहमत मांगों को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री के सामने अपनी आवाज उठानी चाहिए थी ताकि किसानों को न्याय मिलता और वे आंदोलन करने के बजाय अपनी ताकत का इस्तेमाल देश की प्रगति और समृद्धि के लिए अधिक कृषि उत्पादन के लिए करते।
बीबी राजविंदर कौर राजू ने अफसोस जताया कि क्रांतिकारी बदलाव की गारंटी के साथ सत्ता में आई आम आदमी पार्टी की सरकार से भी पारंपरिक पार्टियों की तरह किसानों को ज्यादा उम्मीदें नहीं है इसलिए अन्नदाता के पास आंदोलन करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है।